अमेरिका में H-1B वीज़ा फीस बढ़ने से भारतीय आईटी कंपनियों पर बड़ा असर
अमेरिका ने हाल ही में H-1B वीज़ा फीस में भारी बढ़ोतरी कर दी है। पहले जहाँ एक वीज़ा पर लगभग 7,500 से 10,000 डॉलर खर्च आता था, अब वही लगभग 10 गुना ज़्यादा यानी 90,000 डॉलर तक लागत पहुँच सकती है। इस बदलाव का सीधा असर भारतीय आईटी दिग्गज कंपनियों जैसे TCS, Infosys, HCLTech और Wipro पर पड़ने वाला है।
भारतीय आईटी कंपनियों की चिंता
अमेरिका भारतीय आईटी इंडस्ट्री का सबसे बड़ा बाज़ार है। यहाँ से इन कंपनियों को 85% तक की कमाई होती है और लगभग 3-5% कर्मचारी अमेरिका में ऑनसाइट काम करते हैं। ऐसे में वीज़ा फीस बढ़ने का मतलब है कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी (EBITDA) पर सीधा दबाव।
TCS के पास ही FY23 में लगभग 7,000 H-1B अप्रूवल थे।
अगर इन वीज़ा का नवीनीकरण अक्टूबर 2025 में होगा, तो केवल वीज़ा लागत ही EBITDA को 7-8% तक घटा सकती है।
FY25 तक TCS के लगभग 5,500 कर्मचारी H-1B वीज़ा पर थे।
अब कंपनियाँ क्या करेंगी?
बढ़ी हुई लागत से निपटने के लिए भारतीय आईटी कंपनियाँ कई कदम उठा सकती हैं:
कंपनियों के लिए संभावित विकल्प:
▸ ऑफशोरिंग – यानी ज़्यादा काम भारत या अन्य सस्ते देशों से करवाना।
▸ लोकल हायरिंग – अमेरिका में स्थानीय लोगों को नौकरी देना, हालाँकि यह ज़्यादा महंगा साबित होगा।
▸ सब-कॉन्ट्रैक्टिंग – अमेरिकी छोटी कंपनियों से प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा करवाना।
▸ रिमोट और गिग वर्क – फ्रीलांसर, कॉन्ट्रैक्टर या प्रोजेक्ट-आधारित कामगारों पर ज़ोर देना।
▸ ऑफशोरिंग – यानी ज़्यादा काम भारत या अन्य सस्ते देशों से करवाना।
▸ लोकल हायरिंग – अमेरिका में स्थानीय लोगों को नौकरी देना, हालाँकि यह ज़्यादा महंगा साबित होगा।
▸ सब-कॉन्ट्रैक्टिंग – अमेरिकी छोटी कंपनियों से प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा करवाना।
▸ रिमोट और गिग वर्क – फ्रीलांसर, कॉन्ट्रैक्टर या प्रोजेक्ट-आधारित कामगारों पर ज़ोर देना।
क्लाइंट और प्रोजेक्ट्स पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियाँ पूरा खर्च खुद नहीं उठाएँगी, बल्कि उसका बोझ क्लाइंट पर भी डालेंगी। इससे प्रोजेक्ट की टाइमलाइन बढ़ सकती है और लागत भी बढ़ेगी।
भर्ती विशेषज्ञों के अनुसार, भविष्य में रिमोट कॉन्ट्रैक्टिंग और गिग मॉडल और तेज़ी से अपनाए जाएँगे।
निष्कर्ष
अमेरिका की इस नई वीज़ा पॉलिसी से भारतीय आईटी कंपनियों की कमाई और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट पर असर ज़रूर पड़ेगा। लेकिन, कंपनियाँ अब नई रणनीतियों जैसे ऑफशोर डिलीवरी, सब-कॉन्ट्रैक्टिंग और चुनिंदा ऑनसाइट हायरिंग का सहारा लेकर लागत को संभालने की कोशिश करेंगी।